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पॉली हाउस

क्या होता है कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple), कैसे की जाती है इसकी खेती

क्या होता है कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple), कैसे की जाती है इसकी खेती

कस्टर्ड एप्पल को भारत में शरीफा या सीताफल के नाम से जाना जाता है। यह भारत में मुख्यतः सर्दियों के मौसम में मिलने वाला फल है। लेकिन अगर इसकी उत्पत्ति की बात करें तो प्रारम्भिक तौर पर यह फल अमेरिका और कैरेबियाई देशों में पाया जाता था। जिसके बाद इसका प्रसार अन्य देशों तक हुआ, इसके प्रसार में अंतरराष्ट्रीय व्यापारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple)

भारत में कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की खेती बहुतायत में होती है। अगर मुख्य रूप से इसकी खेती की बात करें, तो महाराष्ट्र, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, असम और आंध्रप्रदेश में इसकी खेती होती है। इन राज्यों में कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) का सबसे ज्यादा उत्पादन महाराष्ट्र में होता है। महाराष्ट्र में बीड, औरंगाबाद, परभणी, अहमदनगर, जलगाँव, सतारा, नासिक, सोलापुर और भंडारा कस्टर्ड एप्पल के प्रमुख उत्पादक जिले हैं।

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) के उपयोग से कौन-कौन से फायदे होते हैं

यह एक ठंडी तासीर वाला मीठा फल होता है, जिसमें कैल्शिम और फाइबर जैसे न्यूट्रिएंट्स की भरपूर मात्रा मौजूद होती है। अगर हेल्थ बेनेफिट की बात करें तो यह फल आर्थराइटिस और कब्ज जैसी परेशानियों से छुटकारा दिलाता है। इसके पेड़ की छाल में मौजूद टैनिन दवाइयां बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसके आलवा अगर इसके नुकसान की बात करें तो इसके फलों का सेवन करने से बहुत जल्दी मोटापा बढ़ता है। इसमें शुगर की मात्रा ज्यादा पाई जाती है, जिसके कारण इसका ज्यादा सेवन करने से बचना चाहिए।


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कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की ये किस्में भारतीय बाजार में मौजूद हैं

भारतीय बाजार में कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की ढेर सारी किस्में मौजूद हैं। जो अलग-अलग राज्यों में अगल-अलग जगह पर उगाई जाती हैं। कस्टर्ड एप्पल की मुख्य किस्मों में बाला नगरल, लाल शरीफा, अर्का सहन का नाम आता है। बाला नगरल किस्म के फल हल्के रंग के होते हैं और इसके फल में बीजों की मात्रा ज्यादा होती है। सीजन आने पर इस किस्म के पेड़ से 5 किलो तक कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा लाल शरीफा दूसरी प्रकार की किस्म है, जिसके फल लाल रंग के होते हैं। इस किस्म के हर पेड़ से सालाना 50 फल प्राप्त किये जा सकते हैं। अर्का सहन कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की तीसरी किस्म है, इसे हाइब्रिड किस्म कहा जाता है। इसके फल तीनों किस्मों में सबसे अधिक मीठे होते हैं।

कस्टर्ड एप्पल की खेती करने के लिए उपयुक्त मिट्टी

कस्टर्ड एप्पल की खेती वैसे तो किसी भी मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन पीएच स्तर 7 से 8 बीच वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त बताई जाती है। यह विशेषता खास तौर पर दोमट मिट्टी में पाई जाती है, इसलिए यह मिट्टी कस्टर्ड एप्पल की खेती के लिए अन्य मिट्टियों की अपेक्षा में बेहतर मानी गई है।

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु एवं तापमान

कस्टर्ड एप्पल की खेती हर प्रकार की जलवायु में की जा सकती है, इसकी खेती के लिए कोई विशेष प्रकार की जलवायु की जरुरत नहीं होती है। लेकिन यदि इसकी खेती शुष्क जलवायु में की जाए तो यह पेड़ ज्यादा ग्रोथ दिखाता है। इस पेड़ को गर्म एवं शुष्क जलवायु में आसानी से विकसित किया जा सकता है। यह पेड़ इस तरह की जलवायु में ज्यादा उत्पादन देता है।


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इस तरह से लगाएं कस्टर्ड एप्पल का पेड़

कस्टर्ड एप्पल का पेड़ लगाने के लिए इसके बीज की 2 से 3 इंच गहरे गड्ढे में बुवाई करें। इसके बाद यह पौधा अंकुरित हो जाएगा, जिसके बाद समय-समय पर पौधे को पानी देते रहें और निराई गुड़ाई करते रहें। इसके अलावा इस पौधे को पॉली हाउस में भी तैयार किया जा सकता है। पोलीहाऊस में तैयार करके पौधे को किसी दूसरे स्थान पर स्थानांतरित कर दें। अगर कस्टर्ड एप्पल लगाने के तीसरे तरीके की बात करें, तो यह पौधा ग्राफ्टिंग तकनीक का उपयोग करके भी तैयार किया जा सकता है। इस तकनीक में कलम के द्वारा पौध को तैयार किया जाता है, बाद में इसे कहीं और स्थानांतरित कर सकते हैं।

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) के पौधों में इतने दिनों के बाद करें सिंचाई

वैसे तो कस्टर्ड एप्पल के पौधों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। लेकिन फिर भी इसे समय-समय पर पाती देते रहना चाहिए। इसके पौधों को अंकुरित होने के तुरंत बाद पानी दें। इसके बाद एक साल तक 3-4 दिन में पानी डालते रहें। एक साल बीतने के बाद हर 20 दिनों में पौधे को पानी दें।
पॉलीहाउस खेती क्या होती है और इसके क्या लाभ होते हैं

पॉलीहाउस खेती क्या होती है और इसके क्या लाभ होते हैं

जैसा कि हम जानते हैं, भारतीय समाज हमेशा से ही खेती पर निर्भर रहा है। हमारे देश की 70 प्रतिशत आबादी कृषि से जुड़ी हुई है। लोग अपनी जलवायु परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग मौसमों में अलग-अलग फसलें उगाते हैं। 

जलवायु परिवर्तन के कारण जलवायु पैटर्न बहुत तेजी से बदल रहा है। भारत एक ऐसा देश है जो अपनी कृषि गतिविधियों के लिए मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर है।

किसानों को जलवायु परिवर्तन से भारी हानि पहुँचती है

जलवायु परिवर्तन की वजह से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है, जिससे कुछ तकनीकों को विकसित करने की आवश्यकता होती है। जो किसानों को कृषि गतिविधियों में काफी सहायता करेगी। 

पॉलीहाउस खेती भारतीय समाज हमेशा से कृषि पर निर्भर रहा है। हमारी 70% आबादी पूरी तरह से अपने निर्वाह के लिए कृषि पर निर्भरती को अधिक लाभदायक, लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल बनाने की दिशा में एक कदम है। आगे इस लेख में, हम पॉलीहाउस खेती के लाभों को देखेंगे।

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पॉलीहाउस कृषि क्षेत्र का एक नवाचार है

वक्त के साथ, खेती को लाभदायक बनाने के लिए खेती के तरीके बदल गए हैं। पॉलीहाउस खेती कृषि का एक नवाचार है, जहां किसान जिम्मेदार कारकों को नियंत्रित करके अनुकूल वातावरण में अपनी कृषि गतिविधियों को जारी रख सकते हैं।

यह ज्ञानवर्धक तरीका किसानों को कई लाभ निकालने में सहायता करता है। आजकल लोग पॉलीहाउस खेती में गहरी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। क्योंकि यह ज्यादा लाभदायक है, और पारंपरिक खुली खेती की तुलना में इसके जोखिम बहुत कम हैं। 

साथ ही, यह एक ऐसी विधि है, जिसमें किसान पूरे वर्ष फसल उगाते रह सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर से पोलीहॉउस खेती के लिए सब्सिड़ी प्रदान कर सकते हैं।

खेती में पॉलीहाउस का इस्तेमाल क्यों किया जाता है

पॉलीहाउस नियंत्रित तापमान में फसल उगाने में बेहद लाभदायक होता है। इसके इस्तेमाल से फसल को नुकसान होने की संभावना कम होती है। 

पॉलीहाउस के अंदर कीट, कीड़ों और बीमारियों के फैलने की संभावना काफी कम होती है, जिससे फसलों को नुकसान से बचाया जा सकता है। इसलिए पॉलीहाउस तकनीक बाधाओं से लड़ने में काफी प्रभावी है।